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भीम भुजंगम वृश्चिक भीषण, घोर विषैले प्राणी। हालाहल विष दन्त वदन से, पीडित हों जगप्राणी।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें। मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।13। ओं ह्रीं व्यालवृश्चिकादिविषदुर्द्धरोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय
अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
नख श्रृंगादिक तीक्ष्ण विषैले, जीवों के दुःख भारी। कर्म असाता प्रेरित प्राणी, भुगते दःख अतिभारी।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें। मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।14।। ओं ह्रीं दुष्टजीवापदकरनखोद्भवोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय
अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वन पशुओं के दाढ़ सीग नख, अति विकराल सतावें। चंचु तुंड दन्तादिक कृत दुःख, घोर असाता लावें।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें। मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।15। ओं ह्रीं चच्चुतुण्डदाढाकण्टकोन्द्रवोपद्रवनिवारकाय श्री शान्तिनाथाय
अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दावानल वन मध्य भयंकर, खग मृग वृक्ष जलावे। कर्म असात उदय यह प्राणी, घोर महादुःख पावे।।
शान्तिनाथ के पद-पंकज जो, मन-मन्दिर में धारें। मुक्तिवधू के कन्त जिनेश्वर, लोकालोक निहारें।।16।।
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