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प्रत्येकाऱ्या
(बेसरी छन्द) यह संसार महा भयकारा, चारगती दुखरूप भंडारा। याते विरचि धरम दृढ़ लागे, सो संवेग जजों भव भागे।। ऊँ ह्रीं श्री संसारमयभीतायै भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
देव मरणकाले दुख पावे, ज्ञानी सो गति भूल न चावे।
यातें विरचि धरम दृढ़ लागे, सो संवेग जजों भव भागे।। ऊँ ह्रीं श्री देवगतिदुःखभीतायै भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मानुषगति अति दुखका भारा, यातें ज्ञानी को भयकारा।
यातें विरचि धरम दृढ़ लागे, सो संवेग जजों भव भागे।। ॐ ह्रीं श्री मनुष्यगतिदुःखविरक्ततायै भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
नारकगति वेदन लख भाई, ज्ञानी पाप थकी भय लाई।
यातें विरचि धरम दृढ़ लागे, सो संवेग जजों भव भागे।। ॐ ह्रीं श्री नरकगतिदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पृथ्वीकाय तने दुख भारी, छेदनभेदन अति दुखकारी।
यातें विरचि धरम दृढ़ लागे, सो संवेग जजों भव भागे।। ऊँ ह्रीं श्री पृथ्वीकायदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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