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जल के दुखकी का मुख गावे, जाने सो जिय पाप कमावे।
यातें विरचि धरम दृढ़ लागे, सो संवेग जजों भव भागे।। ऊँ ह्रीं श्री जलकायदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अग्निकाय दुख ही का गेहा, यातें किम उपजे मन नेहा।
यातें विरचि धरम दृढ़ लागे, सो संवेग जजों भव भागे।। ऊँ ह्रीं श्री अग्निकायदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
पवनकाय में दुख अति भाई, हाथ पांच लागे क्षय जाई।
यातें विरचि धरम दृढ़ लागे, सो संवेग जजों भव भागे।। ऊँ ह्रीं श्री पवनकायदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
अडिल्ल छेदनभेदन ताड़न मर्दन दुख घने, और महादुख जान जाँय ते किम् गिने। वनस्पती दुख जोय पापभय चित धरे, सो संवेग जु भाव जजों भवभ्रम हरे।। ऊँ ह्रीं श्री वनस्पतिकायदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
एक स्वास में बार अठारह जो मरे, एकै स्वासै मांहि अठारह तन धरे। ऐसी वेदन लख निगोदके मांहिजी, हो भयभीत सुजजों संवेग जु ठांहि जी।। ऊँ ह्रीं श्री निगोददुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वे-इन्द्री लट जोंक गिंडोला अलसिया, बाला कौड़ी संख आदि दुख में हिया।
इनकी वेदन देख चित्त भय लाय है, सो संवेग जजों लख अघ थर्राय है।। ऊँ ह्रीं श्री द्वीन्द्रियदुःखविरक्ततायै श्रीसंवेगभावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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