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सुरतरु फूल लाय गंध धारी, माल करी शोभा अतिभारी। भाव संवेग पूज भाई, ताफल कामनाश हो जाई || ॐ ह्रीं श्री संवेग भावनायै पुष्पम् निर्वपामीति स्वाहा।
नानारस नैवेद्य बनाया, कनकपात्र भरि आनंद पाया।
भाव संवेग पूज हों भाई, ताफल भूख रोग नस जाई|| ॐ ह्रीं श्री संवेग भावनायै नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
भासी।
दीपक रतन जोत परकासी, सो भरथाल भक्ति सुख भाव संवेग पूज हों भाई, तातें मोह निशा नस जाई।। ऊँ ह्रीं श्री संवेग भावनायै दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
धूप अगर चन्दन की आनो, वन्ही खेय हरष अति मानो। भाव संवेग पूज हों भाई, तातें अष्टकर्म जरि जाई । ॐ ह्रीं श्री संवेग भावनायै धूपम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्रीफल लोंग बदाम सुपारी, खारक पिस्तादिक फलभारी। भाव संवेग पूज हों भाई, मोक्षथान ताके फल पाई।। ऊँ ह्रीं श्री संवेग भावनायै फलम् निर्वपामीति स्वाहा।
जल चन्दन अक्षत सुम लाई, चरु दीपक फल धूप सुभाई। भाव संवेग पूज हों भाई, अभयधाम ताफल मिल जाई। ॐ ह्रीं श्री संवेग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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