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अडिल्ल छन्द
अन्तरिक्ष फिर भौम अंग सुर व्यंजना, लक्षण छिन्न जु सुपन निमित्त वसु भ्रम हना। इनका चितवन दिना रैनि सो भाय है, ज्ञानोपयोग सु जजों अरघ शुभ जाय है।। ऊँ ह्रीं श्री अष्टांगनिमित्तश्रुतज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
गीता छन्द
अब अवधिज्ञान विचार निशदिन भले भाव लगाय है। तिसरूप ही उपयोग वरते, तत्त्वीभेद सुपाय है ।।
इस ज्ञान के त्रय भेद अद्भुत, मूरती सब ही लखे। यह जान ज्ञानपयोग अवधि,सु, जजों ज्यों बहु अघ सुखे ।।
ऊँ ह्रीं श्री अवधिज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
यह जानि देशा-अवधि षट् विध, कौन इन महिमा कहे । सब लोकमें हो मूरती द्रव्य, भेद ताको सब लहे।।
इस रूप जो उपयोग वरते, तत्व-ज्ञान बतावता ।
सो जानि ज्ञानपयोग पूजों, भली विधि जस गावता।। ऊँ ह्रीं श्री देशावधिज्ञानोपयोग भावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
सुन अवधि परमा अधिक जाने, तास की महिमा घनी । द्रव्यक्षेत्र काल सुभाव सबही, जान हैं गुण के धनी।। जाने असंख्या लोक खेतर, मूरती विधि सोय है। मैं जजों ज्ञानपयोग विधितें, नहीं तँह दुख कोय है ।। ऊँ ह्रीं श्री परमावधिज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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