________________
जो मसा तिल सिर पीठ दाढ़ी, पांव कर में जोय है। तिस निमित्त ज्ञान सु सकल जाने शुभाशुभ जो होय है। यह ज्ञान व्यंजन निमित नीको, भला शुभ उपयोग है। मैं जजों मनवचकाय शुध करि, जान सुखदा भोग है। ऊँ ह्रीं श्री व्यंजननिमित्तज्ञानोपयोग भावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तन विषै स्वस्तिक कलश वज्र, सु, मच्छ इन आदिक सही। शुभ होय लक्षण देख इनको, शुभाशुभ भाखे कही। यह ज्ञान लक्षण निमित्त आछ्यो, भाले फल को दाय है।
सो जजों मनवनकाय यह, उपयोग ज्ञान सु भाय है।। ऊँ ह्रीं श्री लक्षणनिमित्तज्ञानोपयोग भावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तँह पट आभूषण शीश करके, उर पगों के जानिये। तिनको सु काटे मूषिकादिक, भेद तिनको आनिये ।। यह देख शुभ अरु अशुभ भाखे, भेद सुख दुख दाय जी। यह छिन्न निमित उपयोग जानो, जजों मनवचकाय जी ।। ऊँ ह्रीं श्री छिन्ननिमित्तश्रुतज्ञानोपयोग भावनायै अघ्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जो लखें सुपना शुभाशुभ को, भेद सुखदुख जान है। इन आदि अंग अनेक समझे, सकल भेद सु आन है। यह ज्ञान स्वप्न निमित्त नीको, बड़ अतिशय धारजी । सो जजों ज्ञानोपयोग मनवच, काय सुखमय सारजी।। ॐ ह्रीं श्री स्वप्ननिमित्तज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
867