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आकाश में रवि चन्द्रतारा, मेघ पटलादिक लखे। सन्ध्या समय के चिन्ह और, अनेक बातन को अखे।।
सो होय इनके निमित्त सेती, शुभाशुभ सो जानिये।
अन्तरीक्ष निमित्त-पयोग ज्ञानसु, जजों बहुथुति आनिये।। ॐ ह्रीं श्री अन्तरिक्षनिमित्तज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
भूमि में मणि रतन कंचन, धातु खान सु जान है। इन आदि और अनेक चिन्हसु, भीम के सब थान हैं।।
सो लखे ज्ञानोपयोग धारी, शुभ अशुभ जाने सही।
अन्तरिक्ष भीम निमित्त नीको, सो जजों बहु धुनि कही।। ॐ ह्रीं श्री भीमनिमित्तज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
मनुष तिर्यक देह के शुभ, अशुभ चिन्ह सु जानिये। रस प्रकृति रुधिरादिक सुलखिके, अशुभ शुभ पहिचानिये।।
यह अंगनिमित्त जु ज्ञान अद्भुत महासुख उपजायजी।
___ मैं जजों ज्ञानोपयोग ऐसो, भलो अरघ मिलायजी। ऊँ ह्रीं श्री अंगनिमित्तज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
सुन शब्द नर तिर्यंच केरा, शुभाशुभ जाने सही। खर शब्द घूघू काक स्याल सु सारसा जो धुन कही। इन आदि वच सुनि कहे सुखदुख, स्वरनिमित्त सु जानिये।
मैं जजों यह उपयोग ज्ञानी, शीश नय थुति आनिये।। ऊँ ह्रीं श्री स्वरनिमित्तज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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