________________
जल चन्दन अक्षत सुम जेय, चरू दीपक अरु धूप फलेय।
पूजों ज्ञानभावना सार, अद्भुत फलदायक निरधार।। ऊँ ह्रीं श्री ज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
प्रत्येकाध्य चौपाई
मतिज्ञान उपयोग सु जान, इन्द्रिय मन द्वार है ज्ञान। अधिक छतीस तीन सै भेव, इनकी मनवच करिहों सेव॥ ऊँ ह्रीं श्री मतिज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
श्रुतज्ञान मय वरते सोय, जो उपयोग धनी विध होय।
द्वादशांग के जाने भेव, इनकी मनवच करिहों सेव।। ऊँ ह्रीं श्री श्रुतज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
(गीता छन्द)
ज्ञान निमित्त सु आठ माही, मन वचन बरते सही। निशदिन करे अभ्यास तिनको, मरमको लख सब कही।।
सो जान ज्ञानोपयोग नीको, भली जुत गिनों। मैं जजों मनतन वैन शुधकर, अज्ञानतम ताफल हनो।। ॐ ह्रीं श्री अष्टनिमित्तज्ञानोपयोग भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
865