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जयमाला
दोहा
सकल धर्म यातें रहें, या बिन धर्म अधर्म। लातें सबमें शील शुभ, काटत खोटे कम।।
(मुनयानन्द की चाल) शील सब धर्म को मूल मन आनिये, शीलगुण पूज्य सुरलोकतें जानिये। शीलसो सार गुण और नहि पाय, मैं नमों शीलगुण शीशकर लाय है।। शील ही सर्वदा सांच शिवराह है, शीलगुण कामकी हरत सब दाह है। शील जगपूज्य मुनिराज इमि ध्याय है, मैं नमों शीलगुण शीश पर लाय है।।
शील शिव-राह को वाहना सार जी, शील ही मोक्ष दे करे भवपार जी। __ शील भवसागरा तार नौकाय है, मैं नमो शीलगुण शीश पर लाय है।। शील सरदार सब धर्म अंग में सही, शील रवि कामतमनाशि जिनधुनि कही। शील ही पापतरु-हरण असि पाय है, मैं नमों शीलगुण शीश पर लाय है।। शील कपि काम-बन्धन भली सांकरी, शील मदमदनगजहरन हरि बांकरी। शीलधर्मकेतु का दण्ड शुभ भाय है, मैं नमों शीलगुण शीश पर लाय है।।
शील समभाव का दाव कर चाव है, शील सरिता हरे काममलभाव है। शील धर्मचक्र की किरण सुखदाय हैं, मैं नमों शीलगुण शीश पर लाय है।। शील शुम शरण अरु करण मंगल सही, शील जिनदेव-पदवी भली दे कही।
शील शाश्वत भला सर्वदा दाय है, मैं नमों शीलगुण शीश पर लाय है।। शील सो सार उत्तम नहीं कोयजी, ताफलै सकलसुख सहज ही होयजी। शीलगुण सेवना शर्मदा भय है, मैं नमों शीलगुण शीश पर लाय है।।
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