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काम सतावे जाहि जीव उर इमि रहे, मन्द हास्य उर लहे देख तिय सुख चहे।
ऐसे पातकरहित शील जो भाव है, सो मैं पूजों मनवचकाय लगाय है।। ऊँ ह्रीं श्री मन्दहास्यकामवाणरहितशीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
नारितनों सत्कार घनों कर आदरे, नाना पट भूषण भोजन देय खुशी करे।
ऐसे दूषण रहित शील शुभभाव हैं, सो मैं पूजों मनवचकाय लगाय है।। ऊँ ह्रीं श्री स्त्रीसत्कारदोषरहितशीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
नारि मिलन की चाह सदा उर मांहि जी, कामबाण यह आन महा दुखखान जी। __ ऐसे अशुभ निवार शील गुणदाय है, सो मैं पूजों मनवचकाय लगाय है।। ऊँ ह्रीं श्री स्त्रीमेलकामवाणरहितशीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा। मन वच काय लगाय काम ऐसो करे, तातें वीरज क्षरे हरष मनमें धरे। ___ या दूषण रहित शील शुभ भाव है, सो मैं पूजों मनवचकाय लगाय है। ऊँ ह्रीं श्री वीर्यपातातिचाररहितशीलवाड़सहित-शीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम्
निर्वपामीति स्वाहा।
दोहा
इत्यादिक-दूषण-रहित, शीलवर जो भाव। तीरथपद यातें मिलें, मैं पूजों करि चाव।।
ऊँ ह्रीं श्री दोषरहितशीलव्रतेष्वनतिचार भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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