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दोष शंकादि ये, आठ मन आनिये, इन भये नाश सम्यकतनों जानिये।
अशुभ यह जानकर, नांहि हरषाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ॐ ह्रीं श्री शंकादिअष्टदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
योनिधर देव नहिं प्रभुपद तिनविर्षे, तन धरे फिर भरे, तिनहिं प्रभुपद अखे।
न यह नायतन, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री कुदेवप्रशंसानायतनदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
बिन दिगम्बरत्व जग, देव जे हैं सही, भक्त इन देव लखि भला माने वही।
जानि यह नायतन, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ॐ ह्रीं श्री कुदेवभक्तप्रशंसानायतनदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जीवघाती धरम, पापकी खानि है, जीव भोरे हने महाशुभ मानि है।
जान यह नायतन, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री कुधर्मप्रशंसानायतनदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जीवघाती धरम, सेवका खानि है, ताहि पर शंसते नायतन होय है।
जान यह नायतन, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री कुधर्मसेवकप्रशंसानायतनदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति
स्वाहा।
विषय उपदेश गुरु, क्रोध मानी सही, तिनहिं गुरु मान जे, चहें शुभ की मही।
जान यह नायतन, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ॐ ह्रीं श्री कुगुरुप्रशंसानायतनदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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