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देख पर वस्तु को, घृणा आने सही, कर्म को ठाठ समझे, नहीं उर मही।
जान यह सम्यक् को, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री विचिकित्सादोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
देव धर्म गुरु जे परख बिन सेय हैं, मूढबुद्धिधार ते, अशुभ फल लेय है।। जान यह सम्यक को, दोष जो ढाय हैं, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ॐ ह्रीं श्री मूढ़दृष्टिदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वामीति स्वाहा।
देख परदोष शठ, आप मुखतें कहे, दोषयुत चित्त उर, मांहि दुर्जन रहे।
जान यह सम्यक को, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री परदोषभाषणदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
धर्मसेवनविर्षे खेद जो जिय करे, अथिरता भाव उपजाय धर्म परिहरे।
जान यह सम्यक को, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री अस्थितिकरणदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
जीव धरमी थकी, दोष जो उर करे, भाव वात्सल्य का सकल वो परिहरे।
जान यह सम्यक को, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री अवात्सल्यदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
धर्म परभावना, ताहि नहिं उर चहे, देख परभावना, हर्ष नाही लहे। जान यह सम्यक को, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ॐ ह्रीं श्री अप्रभावनादोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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