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________________ मो समान और में, नाहि बल जानिये, मैं बली महा परचण्ड अति मानिये। जान बलमद यही, नाहिं उर लाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री बलमदरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। मैं पढ्यो काव्य व्याकर्ण प्राकृत सही, निमित्त ज्योतिष घनें, ग्रन्थ देखे सही। जान यह ज्ञानमद, नांहि जो लाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ॐ ह्रीं श्री विद्यामदरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। मो हुकम आज नृप, पंच सब मान है, लोक में हम बड़े और नहिं आन है। जान अधिकार मद, उर नहीं लाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री अधिकारमदरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। जाति अरु लाभ कुल, रूप तपबल सही, ज्ञान अधिकार मद, आठ ये दख मही। जान दुखदाय मद, अष्ट नहिं लाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री अष्टमदरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। धर्म सेवन विषे शंक जो चित धरे, नांहि निर्भय थकी, धर्म बिच संचरे। जान सम्यक्त्व को, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री लंकादोषरहित दर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। धर्म को सेय सुख, चाहता लोक में, तासतें आपने, किये सब शुभ हने। जान यह सम्यक को, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री कांक्षादोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा। 840
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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