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कुगुरु के भक्त जो, सेव नीकी करे, देख ताको भलो, जान शोभा धरे।
जान यह नायतन, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री कुगुरुभक्तप्रशंसानायतनदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
देव की परख बिन, प्रभूपद जो कहे, मूढ़ता देव की, जीव सो शिर लहे।
जान यह मूढता, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री देवमूढ़तादोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दयाशून्य धर्म की सेवमें जो परे, परख बिन धर्म की, सेव जो अनुसरे।
जान यह मूढता, दोष जो ढाय हैं, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री धर्ममूढ़तादोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
परख विन सेव जो, गुरुतनी ठानिये, आप शिर भूलका अशुभ बन्ध आनिये।
जान यह मूढ़ता, दोष जो ढाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ॐ ह्रीं श्री गुरुमूढ़तादोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
आठमद आठ शंगादि मल जानिये, नायतन जान षट मूढ़त्रय मानिये। दोष पच्चीस इन, रहित सो भाय है, भाव सो दर्शसंशुद्धि सुखदाय हैं।। ऊँ ह्रीं श्री पंचविंशतिदोषरहितदर्शनविशुद्धि भावनायै अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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