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ॐ ह्रीं लोकबिन्दुसार पूर्व पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति
स्वाहा।
बुधि छैनी पैनी से मिथ्यातम गिरि को चकनाचूर करें। वे ज्ञान दिवाकर, ज्ञानज्योति से आलोकित जीवन कर दें।
मुनि उपाध्याय ज्ञानी दानी, परमेष्ठी इष्ट सुमति दाता। स्वीकार करें बन्दन सबका, उनके प्रति नत सबका माथा।।
ऊँ ह्रीं पंच विंशति मूलगुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
साधु परमेष्ठी - 28 मूल गुण
मुनिराज महाव्रत धारी, सब तिध हिंसा परिहारी। कोई कष्ट न उनसे पावै, ऐसा उपयोग बनावै।।
ॐ ह्रीं अहिंसामहाव्रत भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥
दुख से डर, सब सुख चाहें, यह सत्य सदा निर्वाहें।
मुनि सत्यमहाव्रत धारी, हित मित प्रिय वच अधिकारी।।
ऊँ ह्रीं सत्यमहाव्रत भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा॥2॥
संयम साधन बहुन्यारा, विन दिये न लें, सुविचारा।
मुनिराज अचौर्य व्रत नित, पर द्रव्य विषै न धरै चित||
ॐ ह्रीं अचौर्यमहाव्रत भूषिताय साधु परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा॥3॥
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