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कल्याण अर्हन्त के, गर्भ जन्म तप ज्ञान। पुनि कल्याणक वाद में, हो वर्णित निर्वाण।। पद संख्या इसमें कही, छब्बिस कोटि जिनेश । कल्याणक के पाठ से, हो कल्याण विशेष || 22৷
ऊँ ह्रीं कल्याणवाद पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति
स्वाहा।
कला वहत्तर पुरुष की, चौसठ नारी वर्ग । अलंकार वर्णन करे क्रिया विशाल सर्व
पद संख्या नव कोटि है, इस पूरव में जान साधक शुध उपयोग की कला, रखें मुनि ध्यान ||23|
ऊँ ह्रीं क्रियाविशाल पूर्व पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति
स्वाहा।
प्राणापान क्रिया बहुल, आयुर्वेद विधान । पूर्व प्राण - अनुवाद में, काय चिकित्सा ज्ञान ।। कोटि त्रयोदश पदों में वर्णन मधुर अनूप ।
यह तन कैसे रह सके, धर्म साधना रूप | 24৷
ऊँ ह्रीं प्राणावाद पूर्व पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति
स्वाहा।
त्रिभुवन सार सुमोक्ष सुख, सुख अनन्त बल धाम। लोक बिन्दु वर्णन करे, शिव साधन अभिराम॥ द्वादश कोटि, पचास लख, पद शिवपद दरशाय। श्रुत अपार भंडार को, नमन करत हरषाय॥25॥
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