________________
ऊँ ह्रीं आत्मप्रवाद पूर्वश्रुत ज्ञान पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा।
कर्म किये, चेतन बंधे, कर्म बन्ध के पाश। जप तप करते संयमी, करें कर्म को नाश।।
कर्म निर्जरा आदि को, वरणै कर्म प्रवाद।
कोटि सु अस्सी लाख पद, करें कर्म प्रतिवाद।।19॥ ऊँ ह्रीं कर्मप्रवादपूर्व श्रुतज्ञान पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा।
व्रत उपवास प्रतिक्रमण, समिति गुप्ति शुभ कार्य। कहता प्रत्याख्यान श्रुत, पाले मुनि आचार्य।। पद चौरासी लाख मय, प्रत्याख्यान सुशास्त्र।
उपाध्याय आचार्य मुनि, संयम के सत्पात्र।।20। ऊँ ह्रीं प्रत्याख्यान पूर्व श्रुतज्ञान पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा।
लघु विद्यायें सात सौ, पंचशतक सु महान। सव विद्या अनुवाद में, वर्णित रहें सुथान।। एककोटि दश लाख पद, का वर्णन अति रम्य।
विद्या साधन विधि कही, ज्ञानी को मति गम्य।।21।। ऊँ ह्रीं विद्यानुवादपूर्व श्रुतज्ञान पठन पाठन गुण भूषिताय उपाध्याय परमेष्ठिने नमः अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा।
795