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विषय विकारों से विमुख, ब्रह्मभाव में लीन
ब्रह्मचर्य उत्तम धनी, हों आचार्य प्रवीन ।।
ऊँ ह्रीं उत्तम ब्रहमचर्य धर्मगुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।22।।
षट आवश्यक
आचार्य मुनीश्वर सामायिक, प्रतिदिन त्रिकाल, विधि से करते सामायिक में हो निरारम्भ, मन वचन काय वश में करते ।।
मन की चंचलता रुकने पर, सबके प्रति समता भाव लगे। ज्यों लहरों के रुक जाने से, सरवर भी शान्त स्वभाव लगे ।।
ऊँ ह्रीं समता आवश्यक गुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा॥23॥
बन्धन बसु कर्मों के तोड़े, जो सिद्ध परम पद प्राप्त हुए। जो आत्म मूलगुण घाती चतु कर्मों को हन अरहन्त हुए ।। वैसा अक्षय पद मिले अतः, उस मुद्रा का नित आराधन।
आचार्य मुनीश्वर परमेष्ठी, अरहन्त सिद्ध को करें नमन।।
ऊँ ह्रीं वन्दना आवश्यक गुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।24॥
आदीश्वर नाभि नृपति नन्दन, जो आदि ब्रह्मा भी कहलाये। जग की असारता देख, गेहतज, तप करने वन को धाये ॥
वे हुए प्रभु तीर्थंकर, अन्तिम तीर्थंकर महावीर प्रभो।
आचार्य करें इन तीर्थंकर की, भक्ती स्तुति जयघोष अहो।।
ॐ ह्रीं स्तुत्यावश्यक गुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।25॥
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