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मलिन देख मुनि देह को, हो न ग्लानि का भाव। संयम से शुचिता बढ़े, उत्तम शौच स्वभाव।।
ऊँ ह्रीं उत्तम शौच धर्मगुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।16।।
सुख चाहें सब दुख डरें, यही सत्य जगमाहिं। जीने दो अरु खुद जियो, सत्य धर्म की छांह।
ऊँ ह्रीं उत्तम सत्य धर्मगुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा॥17
उत्तम संयम धर्म में व्रत जप तप में प्रीति।
विषय वासना नीच गति, नरकादिक की रीति ।।
ऊँ ह्रीं उत्तम संयम धर्मगुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।18।।
उत्तम तप के तेज से, कर्म शिला हो चूर
दुर्लभ नर भव हो सफल, पातक भागें दूर।।
ऊँ ह्रीं उत्तम तपो धर्मगुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।19॥
उत्तम त्याग महान है, रागद्वेष का त्याग।
अन्तः वहि परिग्रह नहीं, रत्न-त्रय अनुराग॥
ऊँ ह्रीं उत्तम त्याग धर्मगुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।20।।
छोड़ गेह परिवार धन, वेष दिगम्बर धार ।
अन्तः 'आता नहीं, इनका लेष विचार ||
ऊँ ह्रीं उत्तम आकिंचन धर्मगुण भूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति
स्वाहा॥21॥
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