________________
अन्तराय के नाश से, प्रकटा वीर्य अनन्त।
बल महिमा हम क्या कहें, पार न पावें सन्त॥8॥
ऊँ ह्रीं अनन्तवीर्य गुण स्वामिने सिद्धपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
भव भ्रमण व्याधि निर्मुक्त, चिरंतन निजानन्द रस लीन हुये । जो गुण अनन्त स्वामी, वर्णन में अष्ट महागुण लीन हुये। कर्मों के बन्धन काट सभी, सुख दुख आकुलता छोड़ गये।
जल वुदवुद सम क्षणभंगुर लख, इस जग से नाता तोड़ गये।। ॐ ह्रीं अष्ट महागुण स्वामिने सिद्धपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।
आचार्य परमेष्ठी के 36 मूलगुण
मुनियों के संघाधिपति, होते श्री आचार्य । शिक्षा दीक्षा संघ की, इनका पावन कार्य ।। द्वादश तप में छह वाह्यतपों, के धारी हों आचार्य प्रवर । अनशन तप में आहार त्याग कर कर्षं कषायों को ऋषिवर ||
ठाड़े होकर करपात्र बना, धरि मौन सुबिधि पूर्वक ही नित। दिन में लेते वस एक वार, आहार और जल, जीवन हित ।।
ऊँ ह्रीं अनशन तपोगुण आचार्य परमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।1।।
नियमित भोजन की तुलना में, कम खाने का संकल्प लिये। ऊनोदर में निर्गंथ साधु, थोड़े भोजन से तुष्टि किये।।
खाने के लिए नहीं जीवन, पर जीवन हित आहार ग्रहण | वस आत्म साधना में साधक, यह देह बने, इसलिए अशन। ऊँ ह्रीं अवमौदर्य तपोगुणभूषिताय आचार्यपरमेष्ठिने नमः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा।।2।
780