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तीजे वर्ष तुरिय रवि करे, त्याग भावना मन में धरे।
यह व्रत करे सविधि बड़भाग, पावे सुरकामिनि अनुराग।। ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य तृतियवर्षे चतुर्थरविवासरे क्षायिकचारित्र लब्धिविभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तृतीय वर्ष पंचम रविवार, करे मनुजतन का उद्धार।
यह व्रत करे सविधि बड़भाग, पावे सुरकामिनि अनुराग।। ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य तृतियवर्षे पंचमरविवासरे क्षायिकदान लब्धिविभूषिताय श्री
पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तीजे वर्ष छट्ठो रविवार, जीवन सफल करे व्रतधार।
यह व्रत करे सविधि बड़भाग, पावे शिवकामिनि अनुराग।। ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य तृतियवर्षे षष्ठरविवासरे क्षायिकलाभ लब्धिविभूषिताय श्री
पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तृतीय वर्ष सप्तम रविवार रिद्धि से रविव्रत धरे उदार।
यह व्रत करे सविधि बड़भाग, पावे शिवकामिनि अनुराग।। ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य तृतियवर्षे सप्तमरविवासरे क्षायिकभोग लब्धिविभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तृतीय वर्ष अष्टम रविवार, व्रतको करें नियम अनुसार।
यह व्रत करे सविधि बड़भाग, पावे शिवकामिनि अनुराग।। ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य तृतियवर्षे अष्टमरविवासरे क्षायिकोपभोगलब्धि विभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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