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ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य द्वितीयवर्षे नवमरविवासरे क्षायिकवीर्यलब्धि विभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
दुतिय वर्ष रविवार व्रतों का, इसके मंगलमय परिणाम।
पूर्ण करे श्रद्धासमेत ले पाश्वनाथ जिनवर का नाम।। इस प्रकार रविव्रत महान यह भक्तिभाव से करे विशाल।
पूरी मनोकामनाएँ हों, यश वैभव से रहे निहाल। ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य द्वितीयवर्षे नवसु आदित्यवारेषु नवक्षायिकलब्धि विभूषिताय श्री
पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तृतीय पूजा
तीजे वर्ष प्रथम रवि नाम, मास अषाढ़ शुक्ल सुखधाम।
यह व्रत करे सविधि बड़भाग, पावे सुरकामिनि अनुराग।। ऊँ ह्रीं श्री रविवारव्रतस्य तृतियवर्षे प्रथमरविवासरे क्षायिकज्ञान लब्धिविभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तीजे वर्ष दुतिय रविवार, सित आषाढ़ पक्ष अवधार।
यह व्रत करे सविधि बड़भाग, पावे सुरकामिनि अनुराग।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य तृतियवर्षे द्वितीयरविवासरे क्षायिकदर्शन लब्धिविभूषिताय श्री
पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
तीते वर्ष तृतीय रवि पाल, मानवजीवन करे निहाल।
यह व्रत करे सविधि बड़भाग, पावे सरकामिनि अनुराग।। ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य तृतियवर्षे तृतीयरविवासरे क्षायिकसम्यक्त्व लब्धिविभूषिताय श्री
पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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