________________
वर्ष दसरा छटवां रविदिन विघ्नविनाशक मंगलकार। इस व्रत में असीम सुखकारी, मोड़सहित कांजीक आहार।। इस प्रकार रविव्रत महान यह भक्तिभाव से करे विशाल।
पूरी मनोकामनाएँ हों, यश वैभव से रहे निहाल।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य द्वितीयवर्षे षष्ठरविवासरे क्षायिकलाभ लब्धिविभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अयम् निर्वपामीति स्वाहा।
दूजा वर्ष सातवां रविदिन, धर्मपुण्य संचस का द्वार। एकासन कांजीका भोजन, रसना इन्द्रिय का परिहार।। इस प्रकार रविव्रत महान यह भक्तिभाव से करे विशाल।
___ पूरी मनोकामनाएँ हों, यश वैभव से रहे निहाल।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य द्वितीयवर्षे सप्तमरविवासरे क्षायिकभोग लब्धिविभूषिताय श्री
पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वर्ष दूसरा अष्टम रविदिन, सम्यग्दर्शन का निष्कर्ष। कांजिक भोजन द्वारा पाले, रविव्रत का आदर्श सहर्ष।। इस प्रकार रविव्रत महान यह भक्तिभाव से करे विशाल।
परी मनोकामनाएँ हों, यश वैभव से रहे निहाल।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य द्वितीयवर्षे अष्टमरविवासरे क्षायिकोपभोगलब्धि विभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वर्ष दूसरा नवमा रविव्रत, जो शिवमंदिर का आधार। विधिपूर्वक इसको जो पाले, हो संकटसागर से पार। इस प्रकार रविव्रत महान यह भक्तिभाव से करे विशाल।
पूरी मनोकामनाएँ हों, यश वैभव से रहे निहाल।।
745