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तीजे वर्ष नवम रविमीत, व्रतपूर्वक दिन करे व्यतीत।
यह व्रत करे सविधि बड़भाग, पावे शिवकामिनि अनुराग।। ॐ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य तृतियवर्षे नवमरविवासरे क्षायिकवीर्यलब्धि विभूषिताय श्री
पाश्वनाथ जिनेन्द्राय अध्यम निर्वपामीति स्वाहा।
वर्ष तीसरा रविव्रत धरें बिना नमक एकाशन करें।
यह व्रत करे सविधि बड़भाग, पावे शिवकामिनि अनुराग।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य तृतियवर्षे नवसु आदित्यवारेषु क्षायिकलब्धि विभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
चतुर्थ पूजा
वर्ष चौथा पक्ष सित, आषाढ से व्रत कीजिये। एक चाटुक प्रमित हर, रविवार भोजन लीजिये। एक चाटुक भोज का, इसमें विशेष विधान है।
पुण्यपुष्पों से भरा रविवार व्रत उद्यान है।। ॐ ह्रीं श्री रविवारव्रतस्य चतुर्थवर्षे प्रथमरविवासरे क्षायिकज्ञान लब्धिविभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
वर्ष चौथे में नियम से दूसरा रवि धारिये। सविधि ऊनोदर किसे से, निर्जरा विस्तारिये।। एक चाटुक भोज का, इसमें विशेष विधान है।
पुण्यपुष्पों से भरा रविवार व्रत उद्यान है।। ऊँ ह्रीं श्री रविवार व्रतस्य चतुर्थवर्षे द्वितीयरविवासरे क्षायिकदर्शन लब्धिविभूषिताय श्री
पार्शवनाथ जिनेन्द्राय अध्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
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