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र- बीजाक्षर शक्ति बढ़ाता, गणेश भी गुण इसके गाता। रत्नत्रय यह तारण हारा, उभय नयों से हमने धारा ॥ ॐ ह्रीं “र” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 138 ॥
णं-बीजाक्षर शील निधाना, भव समुद्र तारण परधाना। अधिक गुणों का यह बोधक है, कमाश्रव का यह रोधक है ।।
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ॐ ह्रीं "णं" बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। 139 ॥
प- बीजाक्षराय है शंकर सा, धन करता हरता अरि शर-सा । तीन जगत के ईश्वर जैसा, वरदाता गुण सागर ऐसा।। ऊँ ह्रीं “प” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥140॥
व्व-बीजाक्षर भव्य हितंकर, सुजन भक्ति करती तीर्थंकर मुनिजन की जय भव हर्ता है, भव्य जीव पूजन करता है। ऊँ ह्रीं “व्व” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥14॥
ज्ज- बीजाक्षर कह सुमान है, रक्षक है यह परम शान है। शरण भव्य जीवों का तारक, पूजें इसको जो भव-हारक।। ऊँ ह्रीं “ज्ज’” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥142॥
मि- बीजाक्षर पावन करता, पुत्र मित्र कलत्र जु भरता। मन वांछित फलको यह देता, स्वर्ग मोक्ष पद में धर देता ।। ऊँ ह्रीं “मि” बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥143॥
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