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ससाहू सरणं पव्वज्जामि
सा-बीजाक्षर जग जीवन है, गणधरादि सेवित यह धन है। विमल वर्ण यह शुभ उपदेशक, इसको ध्याते मुनि उपदेशक।। ऊँ ह्रीं “सा” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।144॥
हू-बीजाक्षर धर्म प्रदाता, मद हर्ता गुण मैत्री बढ़ाता। दशलक्षण यह धर्म का सर्जक, पापकार्य काहै यह वर्जक || ऊँ ह्रीं “हू” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।। 145।।
स- बीजाक्षर जिनमुख खिरता, यश करता जय देता फिरता। भवहर भव्य सुखाकर सिंधु, सिद्ध-सिन्धु माने शम - म- सिन्धु॥ ॐ ह्रीं "" बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा। 146॥
र- बीजाक्षर धर्म विदांवर, परम मोक्ष वश करे चिदंबर | षोडश कारण भेद हि जानो, सब जन का हितकारक मानों। ॐ ह्रीं “र” बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 147 ॥
णं- बीजाक्षर भव भय हारी, परम सुधाकर ज्ञान बिहारी । गगनगामि चारण भी ध्यावें, इसके गुण हम किसविधि गावें।। ॐ ह्रीं "" बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।। 148॥
प- बीजाक्षर गुणव्रत रक्षक, सुखसंपति कर पाप का भक्षक भव संताप मिटाने वाला, उत्तमपथ दर्शाने वाला।। ऊँ ह्रीं “प’” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।149॥
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