________________
ज्जा-बीजाक्षर तारता, धर्म ध्यान कर जान।
सात लक्ष इसको जपे, जल को अमृत मान।। ऊँ ह्रीं “ज्जा' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।133।।
मि-बीजाक्षर स्वयं दे, अमर बनाता जान।
है अभंग धार्मिक अमी, इसको भजता ज्ञान।। ऊँ ह्रीं “मि'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।134।।
सिद्ध सरणं पव्वज्जामि
(दोहा) सि-बीजाक्षर सिद्ध का, वाचक है यह जान।
प्राणी पीडा दूर हो, इसका यदि हो ध्यान।। ऊँ ह्रीं 'सि' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।135।।
द्धे- बीजाक्षर ज्ञान बढ़ाता, विमल भाव जीवों में लाता। विमल धर्म स्वपर में करता, जीवों की यह बाधा हरता।। ऊँ ह्रीं "द्धे' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।136।।
स- बीज है भूषण जीवों का, भव हर परमात्मा भव्यों का। जिनके मुख से यह भाषित है, स्वर व्यंजन से यह अन्वित है।। ऊँ ह्रीं “स' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।1371
728