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स- बीजाक्षर सद्ध्यान धरावे, संसार दुःख को दूर हटावे।
गुणस्थान पर शीघ्र चढ़ावे, भव पातक में नहीं गिराव।। ऊँ ह्रीं “स” बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।128।।
र-बीजाक्षर सिद्धि सौख्य दे, मोक्षगामि नर का सुसेव्य है।
इसकी जो भी पूजा करते, निज को उत्तम पद में धरते।। ऊँ ह्रीं “र'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।129।।
(दोहा)
भव्य जीव को प्रिय लगे, णं बीजाक्षर सार।
नाम लोक आदिक जिसे, ध्याते हैं निरधार।। ऊँ ह्रीं “णं' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।130॥
प- बीजाक्षर ज्ञान की, करता शुद्धि महान।
देशों में समता करें, पूजूं इसे सुजान।। ऊँ ह्रीं “प'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।131।।
व्व- बीजाक्षर सिद्धि को, देता है यह जान।
काल कूट का नाश हो, जप से इसके मान।। ऊँ ह्रीं “व्व' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।132।।
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