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ज्जा-बीज अक्षर सुखदाता, शत्रु हरे वर बोध कराता।
आत्म तेज को प्रकट करावे, पूजन का यह भाव बढ़ावे।। ऊँ ह्रीं “ज्जो' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।122।।
राक्षस तस्कर दूर पलावे, मि अक्षर मन को यह भावे। भूमि भूप विद्याधर ध्यावें, जो कोई इसका ध्यान लगावे।। ऊँ ह्रीं “मि'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।123।।
अरहते सरणं पव्वज्जामि
अ- बीजाक्षर पुत्र दिलावे, अंग पूर्व में इसको ध्यावें। जीव स्वरूप बतावे वाला, निराकार आकार निराला।। ऊँ ह्रीं “अ” बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।124।।
र- बीजाक्षर परम भोग है, ज्योति देवों के स्तुति योग है। सिंह सर्प का दर्प नशाता, आधि-व्याधि को पास न लाता।। ऊँ ह्रीं “र'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।125।।
हं-बीजाक्षर पाप पलावे, जिनके तन सम इसको ध्यावें। मुनिजन मन को सदा सुहाता, आत्मबोध का यह है दाता।। ऊँ ह्रीं “हं' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।126।।
ते-बीजाक्षर स्वर्ग धाम दे, भव जल तरने को नौका दे।
राज्य सिद्धि जपने तपने से, होती है श्रद्धा धरने से।। ऊँ ह्रीं “ते' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।127।।
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