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त्त-बीज सु परमात्म को, बतलाता वर रूप।
जिनके वचन प्रभाव से, गणधर से चिद्रूप।। ऊँ ह्रीं 'त'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।8011
मा- बीज है भव-भय हारी, भव्य सिंधु से सेव्य विचारी।
स्वर्ग मोक्ष पद का यह दाता, इसे पूजते चारण त्राता। ऊँ ह्रीं 'मा'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।81॥
अरहंता लोगुत्तमा गौतमादि भाषित अ बीज, वीतराग गति का सु बीज।
बीजों का ईश्वर यह बीज, अरचूँ मैं उत्तम यह बीज।। ऊँ ह्रीं "अ'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।82॥
र-कार बीज अक्षर वरपुण्य, योगीन्द्र ध्येय हरे जो अपुण्य। जिनागम पूज्य परम विधान, पूजं इसको शांति निधान।। ऊँ ह्रीं “र'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।83॥
हं- बीजाक्षर भव-भयहारी, श्री रामचन्द्र से पूजित भारी। स्वर्ग मोक्ष में शीघ्र पठावे, सुख पावे जो ध्यान लगावे।। ऊँ ह्रीं "हं' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।84॥
त- बीजाक्षर लोकेश्वर पूज्य, श्री देता जप से तप पूज्य।
आदिनाथ ने इसे बताया, इन्द्रों ने इसका गुण गाया। ऊँ ह्रीं “त'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।85।।
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