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लो-बीजाक्षर लोक में मान्य, भव्यों का तारक है मान्य।
जिनशासन उद्योतक मानो, पूजों बन्दो उत्तम मानो।। ऊँ ह्रीं “लो'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।86॥
गु-सहित-उ बीज बुद्ध हैं, धर्मामृत यह परम शुद्ध है। आचार सिद्धिकर काम विनाशी, पूजूं मैं भी यह अविनाशी।। ऊँ ह्रीं 'गु'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।87॥
त्त- जो बीज है विश्वभूप है, सर्वज्ञ बीज यह सौख्य रूप है।
शोक हरे यह काम विदारी, पूजू इसको आत्म बिहारी।। ऊँ ह्रीं "त'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।88।।
मा- बीजाक्षर भव-जल नौका, भव्य मुनी के हरता शोका। काम अग्नि को मेघ समाना, पूजूं इसको यह अमलाना।। ऊँ ह्रीं 'मा'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।89॥
सिद्धा लोगुत्तमा
सि-बीजक्षर विल सुखकारी, शुक्लमयी लेश्या अविकारी।
चारण इसका ध्यान लगाते, भवसागर से वे तिर जाते।। ऊँ ह्रीं 'सि'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।90॥
द्धा- बीजाक्षर आदिनीत है, इन्द्रों से भी पूज्य गीत है। चारण इसका ध्यान लगाते, भवसागर से वे तिर जाते।। ऊँ ह्रीं "द्धा'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।91॥
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