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साहू-मंगलं
सा- बीजाक्षर मंगलकर है, योग प्रदायक विद्याधर है।
सम्यग्दर्शन शुद्ध बनाता, पूर्जे अर्घ चढ़ाकर ध्याता।। ऊँ ह्रीं 'सा'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।59॥
हू-बीजाक्षर पुण्य प्रदाता, धर्म बीज है रोग नशाता।
धर्म का ज्ञाता जगदानंदी, पूजू इसको परमानंदी।। ॐ ह्रीं ह'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।600
मं-बीजाक्षर को मैं वन्दं, जरातीसार संग्रहिणी हन्दू। विशाल बोध दायक मैं बन्दू, पूजू नितप्रति मैं अभिनन्दूँ। ऊँ ह्रीं 'मं' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।6।।
ग- कार बीज मंगलकर्ता है, मृत्यु शोक को यह हर्ता है। __ घोरोपसर्ग विघातक जानो, पूजो वंदों पावन मानो।। ऊँ ह्रीं 'ग'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।62।।
लं-कार बीज अक्षर धर्माकर, धर्ममूर्ति है धर्म दिवाकर। परम ज्ञान सूर्य मय जानो, तत्व विधायक उत्तम मानो। ऊँ ह्रीं “लं' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।63॥
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