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केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं
(दोहा)
के-कार बीज यह शुद्ध है, जप से भव भय दूर। सुगति करे, दुर्गति हरे, पूजूं यह है सूर।।
ॐ ह्रीं "के" बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥64॥
(चौपाई)
व- कार बीज भव तारकमाना, लोकांतिक वर जाप्य है जाना। अधर्म-दुःख कारक का हर्ता, पूजूँ इसको मानूँ संता॥ ॐ ह्रीं “व’” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा।।65॥
लि- कार बीज यह ब्रह्म जात है, उपेन्द्र सेव्यहै विबुध ज्ञात है। चन्द्रकांति सम शांति ध्येय है, पूजूं इसको साधु ज्ञेय है। ऊँ ह्रीं “लि’” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥66॥
प-कार बीजाक्षर भव्य सेव्य है, भवादि दुःख प्रविनाशनीय है। विकार दूर करता वर बोध, पूजूँ इसे अर्घ वर शोध ॐ ह्रीं “प” बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा॥67॥
ण्ण- कार शुभ बीज मार्ग है, वाच्य रूप जो जगत कांत है। जीव स्वरूप प्रकाशक कारी, पूजूँ मैं सब शोक जु हारी।। ॐ ह्रीं "ण्ण" बीजाक्षराय अघ्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥ 68॥
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