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सिद्धा-मंगलं सि- बीजाक्षर पांडित्य प्रदाता, भव नाशक भव्यों का त्राता।
आत्म-ब्रह्म श्री से जो होता, पूजू व, आनन्द होता। ऊँ ह्रीं 'सि'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।54॥
द्धा-बीजाक्षर दुख का हारी, मोक्ष धाम दाता सुखकारी। सत्यवचन जिन मुख से निकला, आनंद प्रदाता है यह सकला।। ऊँ ह्रीं "द्धा'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।55।।
मं-बीजाक्षर को हम ध्यावें, इन्द्र पूज्य है गुण हम गावें। जरा मरण के दुःख का हर्ता, अर्घ संयुक्त सौख्य सुकर्ता।। ऊँ ह्रीं “मं' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।56॥
ग-बीजाक्षर शांति प्रदाता, संसार ताप को दूर हटाता।
परमानन्द परम पद दाता, पूजू होती दूर असाता।। ऊँ ह्रीं 'ग'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।57॥
लं- बीजाक्षर उत्तम जिन भाषित, दुःख शोक संताप विनाशित।
पूजू भव हंता दे साता, इसको मानूं उत्तम त्राता।। ऊँ ह्रीं “लं' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।58।।
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