________________
णं-बीजाक्षर अवश्य ही, भरे पुण्य भंडार। महा योगी कर ध्येय है, पूजू अर्घ उतार।।
ऊँ ह्रीं ‘‘णं' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥22॥
ऊँ णमो उज्वझायायणं
प्रणव बीज ऊँ कार है, तीन लोक में दीप। लोकालोक प्रकाशता, यह तो परम प्रदीप
ऊँ ह्रीं “ऊँ कार'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।23।
ण-बीजाक्षर शुद्ध है, संसार दुःख हर जान। योगी ध्यान-गत नित्य है, पूजू अर्घ प्रदान।।
ऊँ ह्रीं 'ण'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।24।
मो-बीजाक्षर पुण्य बढ़ाता, वीतराग दीपक कहलाता। पूजू अर्घ चढ़ाकर ध्याऊं, इसमें अपनी लगन लगाऊँ।। ऊँ ह्रीं मो' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥25॥
उ-बीजाक्षर धर्ममई है, जिन मुख से निकला यह वर है। संसार ताप का हारक जानो, सुना मंत्र यह अघ हरमानो।। ऊँ ह्रीं “उ'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥26॥
व-बीजाक्षर सौख्य बढ़ावे, आत्मिक परमानंद दिलावे। दुःख शोक को दूर भगावे इसकी महिमा सुर नर गावें।। ॐ ह्रीं 'व'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा॥27॥
708