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________________ ऊँ णमो आइरियाणं ऊँ बीजाक्षर शुद्ध है, श्रीक सिद्ध-गति दाय। केवलज्ञान स्वरूप है, पूजू अर्घ बनाय।। ऊँ ह्रीं ऊँ कार'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।15।। ण-बीजाक्षर ज्ञान-प्रद, लोक नायक ज्ञान। सर्वाक्षर का भूप है, पूजू अर्घ प्रदान।। ऊँ ह्रीं 'ण'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।16।। मो-अक्षर इस लोक में, काम्यप्रद जान। कामहारी जिन मित्र है, पूजू अर्घ प्रदान।। ऊँ ह्रीं “मो'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।17। आ-बीजाक्षर ध्यान से, बढ़े नहीं संसार। पाप ताप हरता यही, पूजू अर्घ उतार।। ऊँ ह्रीं "अ''बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।18।। इ-बीजाक्षर रम्य है, जिनवर कथित सुजान। चारों गति से तारता, पूजू अर्घ प्रदान।। ऊँ ह्रीं 'इ'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥19॥ रि-बीजाक्षर शुद्ध है, पंच बाण हो नष्ट। श्री जिन सम मैं पूजता, रहे न कोई कष्ट।। ऊँ ह्रीं 'रि'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।20॥ या-बीजाक्षर शांत है, जीव राशि दे तार। जिन गुण सम पूजूं इसे, अर्घ चढ़ा हितकार। ॐ ह्रीं 'या'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा॥21॥ 707
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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