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प्रत्येक अर्घ
ऊँ णमो अरहंताणं ऊँ प्रणव है धर्म दे, शांति ज्ञान दे जान। वीतराग वर ध्यान से योगी वंद्य ही मान।।
ऊँ ह्रीं "ऊँ कार'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥1॥
ण-बीजाक्षर वारि से, पाप नाश हो पुण्य। वीत शोक करता यही, तारक हरे अपुण्य।।
ऊँ ह्रीं 'ण'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।2।।
मो-बीजाक्षर सिद्ध है, करे कर्म द्वय नाश। जलादि से पूजू इसे, गुण कर पूरे आश।।
ऊँ ह्रीं “मो'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा॥3॥
अ-बीजाक्षर प्राणि है, प्राण रक्षण ज्ञान। गणधर ने जीवन कहा, केशव करते ध्यान।।
ऊँ ह्रीं "अ'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा॥4॥
र-बीजाक्षर रम्य है, उभय लोक में पूज्य। जिन रवि का यह गात्र है, पूजू होने पूज्य।।
ऊँ ह्रीं 'र'' बीजाक्षराय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।5।
हं-बीजाक्षर ध्यान से, कल्मष होते दूर। परमानन्द सदा करे, सेवे हो गुणपूर।।
ऊँ ह्रीं 'हं' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।6।
ता-बीजाक्षर धर्म से, शुद्ध स्वर्ग गति प्राप्त। पूजू परम सुकर्म गृह, जलादि से जिमि आप्त।।
ऊँ ह्रीं “ता'' बीजाक्षराय अयं निर्वपामीति स्वाहा।।7।
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