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सर्व पाप हर मंत्र को, सर्व सौख्य कर जान।
पूजॅ उत्तम चारुक से, मंत्रराज वर मान।।5।। ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कार मंत्राय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
सर्व पाप हर मंत्र को, सर्व सौख्य कर जान।
पूनँ उत्तम दीप से, मंत्रराज वर मान।।6।। ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कार मंत्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।
सर्व पाप हर मंत्र को, सर्व सौख्य कर जान।
पूनँ उत्तम धूप से, मंत्रराज वर मान।।7। ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कार मंत्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।
सर्व पाप हर मंत्र को, सर्व सौख्य कर जान।
पूर्जे फल से मैं सदा, मंत्रराज वर मान।।8।। ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कार मंत्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा।
सर्व पाप हर मंत्र को, सर्व सौख्य कर जान।
पूर्जे आठों द्रव्य से, मंत्रराज वर मान।।9।। ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कार मंत्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।
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