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समुच्चय पूजा
(स्थापना) जिन शासन का सार है, मंत्रराज यह जान। सर्वपूज्य यह स्थापना, मंगलादि युत मान।। ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कारमंत्र ! अत्रावतर अत्रावतर संवौषट् आह्वाननम्।
ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कारमंत्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कारमंत्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधपनम्।
सर्व पाप हर मंत्र को, सर्व सौख्य कर जान।
पूर्जे उत्तम वारि से, मंत्रराज वर मान।।1।। ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कार मंत्राय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
सर्व पाप हर मंत्र को, सर्व सौख्य कर जान।
पूर्जे चंदन आदि से, मंत्रराज वर मान।।2।। ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कार मंत्राय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
सर्व पाप हर मंत्र को, सर्व सौख्य कर जान।
पूनँ अक्षत आदि से, मंत्रराज वर मान।।3।। ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कार मंत्राय अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा
सर्व पाप हर मंत्र को, सर्व सौख्य कर जान।
पूनँ मैं सुमनादि से, मंत्रराज वर मान।।4।। ऊँ ह्रीं अनादिनिधन पंचनमस्कार मंत्राय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
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