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समता भाव के जो आगार हैं, महामहल वर पंचाचार है। विश्वबोध मय परम शांत जो, वंदूं साधु ज्ञानी दांत जो।। 10।। शुद्ध बीजाक्षर की यह पूजा, रचता शिव सुख पाने सर्वजीव त्रायक वर नौका, संसार सिन्धु से तारक लोका।।11।।
दूजा।
परम सुन्दर अन्तर शोभा, मूल धर्ममय हरती लोभा। चैत्यालय या तीर्थक्षेत्र में, भूमि शुद्ध उत्तम गृह क्षेत्र मे ।।12।। मंडल सुन्दर इसका मांडे, मंगल लोकोत्तम शरणा जागे । सहस्त्रनाम दश अर्घ चढ़ावे, जिनके आगे शीश झुकावे ॥13॥
सकलीकरण करें मन लाके, ध्यान मौन सहित वर लाके । श्रावकाचार में जो लवलीन हैं, सद्दृष्टि से जो प्रवीण हैं ।।14।।
बीजाक्षर के जो ज्ञाता हैं, पंडित श्रेष्ठ परम त्राता हैं। सम्यक्त्व मूल कारणयुत जो हैं, स्नानशुद्धि संशुद्धि भी जो हैं || 15॥ करता है वह जिनकी पूजा, पापहारी विधान यह पूजा। मैं भी श्रीमत् संघ के आगे, पुष्प श्रेपता चित्त लगाके ।।16।। ऊँ ह्रीं प्रभावक संघ-सानिध्ये- शतैक कमलोपरि पुष्पांजलिं क्षिपेत्।
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