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णमोकार पैतीसी पूजन विधान (श्री अभयनंदि गुरुभ्यो नमः)
हिन्दी अनुवादक - 105 क्षुल्लक सिद्धसागर महाराज
नयप्रमाण के जो कर्ता हैं, घाति कर्म के जो हर्ता है।। केवलज्ञान दिवाकर जो हैं, लोकालोक प्रकाशक जो हैं।।1।।
अनंत सौख्य के गृह को बंदूं, देवाधिप जिनको अभिनंदूं। उभय लक्ष्मी भोक्ता को वंद, विद्येश्वर द्वय को अभिवंद।।2।। सकल सौख्ययुत सिद्ध को बंदूं, जन्म-मृत्यु-जरा हर वंदूं। अष्टम भू के ईश को वंदूं, भावनाशक जिननाथ को वंदू।।3।।
अक्षय शाश्वत आप्त को वं, रोग शोक निरिक वंदूं। सिद्ध आत्म-लब्धि के दाता, सर्व सिद्धि-ऋद्धि के प्रदाता।।4।।
गणाधीश आचार्य को वंदूं, विश्व ज्ञान पारंगत वंदूं। परम चरित्र के जो सिन्धु हैं, शिष्यसिन्धु को जो इन्दु है।।5।।
परम रत्नत्रय के जो गृह हैं, धार्मधार मद-नाशक जो हैं। हित उपदेशक को मैं वंदूं, गणनायक को नितप्रति वंदू।।6।।
उपाध्याय अति धीर को वंदूं, परमज्ञान उपदेशक वंदूं। अंग पूर्व की खनि को वंदू, शिष्य वर्ग सु पाठक वंदूं।।7।।
ज्ञानाभ्यास सदा जो करते, पंचमहाव्रत को जो धरते। यथाख्यात के घर जो शुद्ध है, जो समीचीन धर्म दीपकहैं।।8।
स्वात्मध्यान में सदा लीन जो, दयानिधि हैं मौनधार जो। तीनलोकपति गणाधीश जो, निर्मल भाव लहरीक ईश जो।।।।
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