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________________ विस्मयरोग रुशोक राग चिंता सब जारी, द्वेष तणो नहीं लेश दोष अष्टादश हारी || रूप निरंबर शांत तेज रवि कोटि लजायो, धर्मचक्र तुम धार कर्मचक्री जय पायो। नमूं ब्रह्म वय धार नमूं शिवदानी ध्यानी, मानस्थंभ विलोक शीश नावैं बहुभारी।। तेरो दरश प्रभाव सुजश जग छाय रह्यो है, वचन सुधासम धार जीव बहु ज्ञान लह्यो है। दर्श भाव उर धार भेक सुर पदवी पाई, इन्द्र भूति कर दर्श ज्ञान चवथो सु लहाही।। तुम दर्शन तें नाथ कोटि भव के अघनाशै, तुम दर्शन तें नाथ ज्ञान सम्यक परकाशै। तुम दर्शन तैं नाथ नरक पशुगति नहीं पावै, तुम दर्शन तें नाथ मुक्ति कमलापति थावै। तुम दर्शन तें नाथ नवों निधि मैंने पाई, तुम दर्शन तें नाथ मनुष भव सफल कराई। आयो तुम दरबार युगल पद धन्य हमारे, पूजे तुम पद धार हिये दृग रूप निहारे।। श्रवण सकल सुनि वैन सफल रसनागुण गाये, शीश सफल कर जोर हृदय शुचिध्यान धरायो। नमो वीर महावीर नमो सन्मति के करता, वर्द्धमान महावीर नमूं भवसंकट हरता।। पांवापुर निर्वाण नमूं सुरनर खग ध्यावै, जै जै शब्द उचार बहुत वादित्र बजावै। अहमिंद्रादिक वास नहीं जाचूं स्तुति करके । भव भव में पद सेव देहु मिथ्यातम हरिकै।। (दोहा) अष्ट द्रव्य कन थाल भरि, पूजं मन वच काय। भव दधि डूबत काढिये, “चन्द’” मुकति पहुँचाय।। ऊँ ह्रीं नव लब्धि धारक जिनेभ्यो पूर्णार्थं निर्वपामीति स्वाहा। (सोरठा) जो नर पूज रचाय, पाठ पढै मन लाय के निश्चय सुर पद पाय, नरहै मुनि शिव तिय वरै। ।। इत्याशीर्वादः ।। ।। इति श्री लब्धि विधान पूजा संपूर्णम् ।। 700
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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