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मनवचतन सावध योग निरवर्ति है, तत् सामायिक चारित लब्धि सु धरति है। ता स्वभाव की प्रापति जिन पूजू सदा, सकल पाप क्षय जाय लहूँ शिव संपदा।। ऊँ ह्रीं सर्व सावद्ययोगस्य विरति सामायिक चारित्रलब्धि प्राप्तेभ्यो अर्घ निर्वपामीति
स्वाहा।।3॥
हिंसादिक पन पाप प्रमाद वसाय जू, जो अकृत्यकृत छेदन अर्थ धराय जू। आगमोक्त विधि पुनः जु चारित लब्धि है, छेदोस्थापन पाय जजू गुण लब्धि है।। ऊँ ह्रीं छेदोपस्थापना नाम चारित्रलब्धि जिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।4।।
कोइयक मुनि परिणाम विशुद्धी धारते, कस्मिन् काले स्वेच्छा करत विहारतें।
त्रस थावर वध दोष निवारण कारणे, जजू लब्धि चारित्र विशुद्धि धारण।। ॐ ह्रीं परिहारविशुद्धिनाम चारित्रलब्धि जिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।5।।
आशय है जहँ सूक्ष्म लोभ तणो सही, ता परिणाम निवारण चारित जो कही।
सो ही सूक्ष्मसांपराय विख्यात है, तास लब्धि धर देव जजू अवदात है।। ऊँ ह्रीं सूक्ष्म सांपरायनाम चारित्रलब्धि जिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।6।।
आतम शुद्ध स्वरूप तणो जो ध्यान है, यथाख्यात चारित्र सार जग मान है। धरत लब्धि जो ऐसी तिन पन ढोक है, पूजू अर्घ चढाय ज्ञान को थोक है।। ऊँ ह्रीं यथाख्यात चारित्र लब्धि धारक जिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।7।
अष्ट गुणन संयुक्त सिद्ध परमेष्ठि है, तिन में तन्मय भाव चितवन श्रेष्ठ है। निश्चय चारित लब्धि सार यह जानिये, ता धारक जिन जजू भक्ति उर आनिये।।
ऊँ ह्रीं निश्चय चारित्र लब्धि धारक जिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।8।
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