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मिष्ट मनोहर फल सुमंगाय, रसना घ्राण नयन हरषाय। ___ सदाशिव होय जय जिनराज सदा शिव होय। पूजू चरण लब्धि हरषाय, मोक्षरमा हमकू बकसाय।
सदाशिव होय जय जिनराज सदा शिव होय। ऊँ ह्रीं क्षायिक चारित्र लब्धि धारक जिनेभ्यो फलं निर्वपामीति स्वाहा।।8।।
अष्ट द्रव्य मय अर्घ बनाय, हरषहरषि बहु नृत्य कराय।
सदाशिव होय जय जिनराज सदा शिव होय। पूजू चरण लब्धि हरषाय, भव सागर तैं पार लगाय।
सदाशिव होय जय जिनराज सदा शिव होय। ऊँ ह्रीं क्षायिक चारित्र लब्धि धारक जिनेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।9।।
प्रत्येक अर्घ (अडिल्ल छंद) पंचेन्द्रिय के विषय तणी जो वासना, तातें विरकत भाव भये दुख नाशना।
ऐसी चारित लब्धि प्राप्त जो देव है, तिनके पद मैं जजूं हरो अघ टेव है।। ऊँ ह्रीं पंचेन्द्रियविषयविरक्तभाव चारित्रलब्धि प्राप्तेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।1।
एकेंद्री आदिक त्रस थावर जीव हैं, तिन सब की अनुकंपा धार सदीव है।
ऐसे उत्तम भाव प्राप्त लब्धि लही, ते जिन पूजू देहु हमें शिवकी मही।। ऊँ ह्रीं एकेन्द्रिय आदिक त्रसस्थावरजीवानाम् अनुकंपाभाव चारित्रलब्धिधारक जिनेभ्यो अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा॥2॥
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