________________
प्रथम स्वर्गदि कल्प षोडश है सही, तासमें देवकी आयु सुख सर्व ही।
काय उत्सेध अरु संपदा जानिये, दर्शना लब्धि धर पूजि उर आनिये।। ॐ ह्रीं कल्पवासीदेवानां प्रथमस्वर्गादिषोडशस्वर्गपर्यंत देवानाम् आयु काय शरीरोत्सेध सुख
संपदादि दर्शनसा दर्शनलब्धि प्राप्तेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।5।
ग्रैवका में सुरा कल्पनातीत है, तासकी कायु पुनि आये जो बीत है।
जानि उत्सेध सो ज्ञान अवगाहना, दर्शना लब्धि धर पूजि है ते जिना।। ॐ ह्रीं ग्रैवेयकवासीदेवानाम् आयुकाय शरीरोत्सेध ज्ञानावगाहनादि दर्शनम् एषा दर्शनलब्धि
प्राप्तेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।6।।
लक्ष पैंताल जोजन सु विस्तार है, सिद्ध सर्वार्थ सो नाम भूधार है। देव अहमिंद्र की आयु सुख कायजी, और उत्सेध अंतराल दर्शावजी।। क्षायिका दर्शनी लब्धि यह है सही, देव जिनराज सुखकार ऐसी लही।
पूजि है शीश निजनाय तिन पायजी, अष्टद्रव्य ल्यायके अर्घकं चढ़ायजी। ॐ ह्रीं पंचचत्वारिंशदक्षेत्रयोजनप्रमितसर्वार्थसिद्धि भूमिकायाम् अहिमींद्र देवानाम् आयुकायशरीरोत्सेध-अंतराल- सुखादि-दर्शन एषा दर्शनलब्धि प्राप्तेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा॥7॥
अष्टमी मोक्ष भू जानि शिव थान है, तासमें वास श्री सिद्ध भगवान है।
दर्शना देव ये दर्श लब्धि धरै, तास पद पूजि है मोक्ष लक्ष्मी करै।। ऊँ ह्रीं अष्टमी मोक्ष भूमिवासी सिद्धानां दर्शनम् एतादृशी दर्शनलब्धि प्राप्तेभ्यो अर्घ
निर्वपामीति स्वाहा।।8।
686