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प्रत्येक अर्घ (छंद लक्ष्मीधरा) लोक पाताल में नर्क भूव्यास है, और आयाम बो उच्चता जास है।
सर्व घनकार युत दर्शितं शक्तिये, पूज जिन दर्शनं लब्धिधर भक्तिये।। ऊँ ह्रीं नरकादि भूमि आयाम दर्शकेभ्यः दर्शन लब्धि प्राप्तेभ्यः भगवत् अर्घ निर्वपामीति
स्वाहा।।1।
भवनवासी बसे देव पाताल है, आय अरु काय उत्सेध अंतराल है।
सुख अरु संपदा आदि जो देखिये, लब्धिधारी जजू दर्शनं पेखिये।। ॐ ह्रीं भवनवासी देवानां भूमिकायां तेषां आयुकायोत्सेधअंतरालसुख संपदादि दर्शन
स्वरूप दर्शनलब्धि प्राप्तेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।2।।
जानि नर लोक में व्यंतरा वास जू, भूमिका मेरु पर्वतादि आवास जू।
दीप दधि अंतलो दर्श ता ज्ञान में, जो जजू दर्शनं लब्धि परि ध्यान में।। ऊँ ह्रीं व्यंतर देवानां भूमिकायां मेरु पर्वतादि स्वयंभू रमण समुद्र पर्यंत असंख्यात द्वीप समुद्राणां ज्ञानदृष्टिनां अवलोकनम् एषा दर्शनलब्धि प्राप्तेभ्यो अर्घ निर्वपामीति स्वाहा।।3।
ज्योतिषी चंद्रसूर्यादि चंद्र पन भेद हैं, भूमिका आयु अर काय उत्सेध है।
सुख साम्राज्य दृग ज्ञानतें जोइये, दर्शना लब्धि धर पूजि अघ धोइये।। ऊँ ह्रीं ज्योतिषीदेवानां भूमिकायां चंद्रसूर्यादि पंचप्रकार ज्योतिष्कानाम् आयुकाय शरीरज्योत्सेध सुख संपदादि ज्ञाननेत्रेण दर्शनं सा दर्शनलब्धि प्राप्तेभ्यो अर्घ निर्वपामीति
स्वाहा॥4॥
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