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शुभ कारिज में करें विघ्न अंतरा यहै, त्रिंशत् कोटाकोटि उदधि थिति थाय है। ताहि छेद जिन आत्म शक्ति प्रगटाइयो, गुण अनंत धर वीयलब्धिहम ध्याइयो।। ॐ ह्रीं अन्तरायकर्मणः त्रिंशतिसागररोपम् स्थितिनाशकेभ्यः अनंतशक्तिधारकेभ्यः वीर्यलब्धिप्राप्तकेभ्यः भगवत् जिनेभ्यः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा॥8॥
द्रव्य भावविधि प्रकृति स्थिति अनुराग है, बंध प्रदेश नशाय कियो भव त्याग है। परम ज्योति परमातम पद बंदों सदा, वीर्यलब्धि क्षायिक धर मैं पूजूं मुदा ।। ऊँ ह्रीं द्रव्यकर्मणां प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशबंधक्षयकारकेभ्यः वीर्यलब्धि प्राप्तकेभ्यः भगवत् जिनेभ्यः अर्घं निर्वपामीति स्वाहा॥
जयमाला (छंद शार्दूल विक्रीडित)
जै सिद्धं सु अनादि अंतरहितं त्रैलोक्यनाथं नुतं, लक्ष्मी बोधविराजितं भव हरं भव्यं सदा संततं। मिथ्या मोह निशाहरं दिनकरं तत्वप्रकाशं बुधं, वन्दे हमगुणमाल सार भणितं त्वत्पादपद्मां बुधं।
(छंद मोतिदाम)
अहो जिन केवलभाव
प्रकाश, कियो मोह महातम नाश।
धरें
गुण सा निजातम रूपं, हरे भव जाय भये शिव भूप । इसी संसार मझार अपार, सहे दुख मैं मन प्रावर्त धार। सबैं तुम जानत ज्ञान मझार, करो करुणा भवसागर तार।। नमों पद दुर्गति नाशन जान, नमों शत इंद्र तुम्हैं नित आन। अदंभ अतृष्ण अदेश महेश, अनंत सुखाकर नाम सुरेश ।। तुम पाय अहो जिनराय, करूं विनती भव दुःख नशाय।
नमों
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