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सतिसो वृष नाही या जगमाहीं, पूज्य कहाही शिव थानी। सब औ गुण धौवे पाप बिलोवै, धर्म मिलावै दुख हानी। पावत शिवनारी मुनिजन प्यारी, सुख करतारी भवि मानौ।
ऐसी सति धर्मा काटत कर्मा, गंध से परमा जजि जानौ।। ॐ ह्रीं श्री सत्यधर्मांगाय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
या सत्य समानौ रतन न आनौ, सम्यक दानौ शिवकारी। भवदधिको नावा असुभ गमावा, सरल स्वाभावा दुखहारी।। सिधलोक नसैनी शिवसुख दैनी, ध्यावत जैनी अमलानौ।
ऐसी सति धर्मा काटत कर्मा, अक्षत परमा जजि जानौ।। ऊँ ह्रीं श्री सत्यधर्मांगाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा।
सति सो नहिं मिन्ता मिटन चिन्ता, अघ अरहिन्ता जसदाई। सतिजगत पियारो भव उद्धारो, दुख जलतारो थुति गाई।। याको मुनि ध्यावे शिवसुख पावै, पाप गमावै भव हानौ।
ऐसी सति धर्मा काटत कर्मा, पुष्पं परना जजि जानौ।। ॐ ह्रीं श्री सत्यधर्मांगाय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।
सति धर्म सु पूजै सब अध धुजै, शिवमग सूजै अधिकाई।
थातै वृष सारा काज संवारा, अशुभ विहारा सिद्धदाई।। सति सारा नीका सुखदा जीका, शिवमग टीका शुभ आनौ।
ऐसी सति धर्मा काटत कर्मा, ले चरु परमा जजि जानौ।। ऊँ ह्रीं श्री सत्यधर्मांगाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
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