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________________ (दोहा) अन्तरंग निरदोश के, प्रगटै आरजव भाव। जाके फल मरनौं मिटै छुटै कर्म को दाव।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमआर्जवधर्मांगाय पूर्णाघ्यं निर्वपामीति स्वाहा। ।। इति उत्तम आर्जव धर्म पूजा संपूर्ण ॥ उत्तम सत्य धर्म पूजा (अडिल्ल छन्द) सत्य सरीसो धर्म जगत में है नहीं, सत्य धरम परभव लहैशिव की मही । तातैं भव दुख हरण सत्य वृष भाइये, यहां थापि मैं जजौं सत्य मन लाइये।। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमसत्यधर्मांग अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननम्। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमसत्यधर्मांग अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्। ऊँ ह्रीं श्री उत्तमसत्यधर्मांग अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्। अथाष्टक (त्रिभंगी छन्द) जो झूठ विनाशै जग विसवासै, पुण्य प्रकाशै हितदानी। सब दोष निवारै समता धारै शिवपुर का गुण थानी॥ जग आदरकारी मोह निवारी, आनंदधारी जग मानो । ऐसो सति धर्मा काटत कर्मा, जल से परमा जजि जानो। ऊँ ह्रीं श्री सत्यधर्मांगाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। 608
SR No.009254
Book TitleVidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorZZZ Unknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1409
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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