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इत्यादिक बहु क्षेत्र सुथाना, पूजनीक तीरथ अघ हाना।
तिनपद सरल भाव शिर नावै, सो आर्जव वृष जजि शिवधावें।। ॐ ह्रीं श्री सकलपूज्यस्थानकपद नमनार्जवधर्मांगाय अध्यं निर्वपामीति स्वाहा।।16॥
जयमाला (दोहा) सरल भाव सारै सरस, सुरनर पूज्य महान। तातैं तजनी कुटिलता, आरजव भाव लहान।।
(बेसरी छन्द) सरल भाव समता उर आने, सरल भाव औगुन भान। आरजव भाव धरै जो जीवा, तिनने जिनवाणी रस पीवा।।
आरजव भाव धरै जे प्राणी, तिनके होनहार शिवरानी। दोष भाग तिनतें नहिं छीवा, आरजव भाव धरै जे जीवा।।
आरजवभाव अमरपद द्यावै, आरजव में ओगुण नहिं पावै। कुटिलभाव विष जिन नहिं पोवा, आरजव भाव धरै जे जीवा।।
आरतिको आरजव हो खोवें, आरजव भाव पापमल धोवै। रोग शोक ताको नहिं छीवा, और आरजव भाव धरै जे जीवा।। आरजव शुद्धभाव जिनपाया, तिनने लहि पुन, पाप गमाया। अनुभव आनन्द तानै छीवा, आरजव भाव धरै जे जीवा।। आरजवभाव दोष सब खोवै, आरजव कर्म कालिमा धोवै।
शुद्ध सुभाव सु तानै लीवा, आरजव भाव धरै जे जीवा।। आरजव भाव सकल को प्यारा, आरजव भाव भ्रमणते न्यारा।
तांकों और रुचे न मतीवा, आरजव भाव धरै जे जीवा।। आरजव सुर शिवके सुख ठांने, आरजव भाव पूर्व अघ भाने। अद्भुत आपापर झिनकिवा, आरजव भाव धरै जे जीवा।।
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